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आखिरी और पहली कील

>> Thursday, December 18, 2008


मैंने ---

अपनी सारी भावनाओं ,

सोच , इच्छा ,

उम्मीद और अनुभवों को

कैद कर दिया है

एक ताबूत में ,

और

ठोक दी है उसमें

एक अन्तिम कील भी ।


अब तुम चाहो तो

दफ़न कर सकते हो

ज़मीन के अन्दर

और न भी करो तो

कोई फर्क नही पड़ता ।


अब इनका बाहर आना

नामुमकिन है ,

बस ---

मुमकिन होगा तब ही

जब मैं ख़ुद

उखाड़ दूँ

इस ताबूत की

पहली कील को ।



4 comments:

taanya 12/20/2008 4:57 PM  

jaha shuru me rachna ko padh kar niraasha ka ehsaas hota hai..vahi rachna ki end ki lines...
बस ---
मुमकिन होगा तब ही
जब मैं ख़ुद
उखाड़ दूँ
इस ताबूत की
पहली कील को ।
umeede sir uthaati hui nazer aati hai...jo andhkaar ko tod ujaas ki taraf jane k prayaas ka ehsaas deti hai..

aur ham umeed karte hai sangeeta ji ki vo pehli keel hi praysrat ho aur jald se jald aap us taaboot k kaid se baaher aaye..

ek umda rachna...badhaayi..

yashoda Agrawal 9/27/2021 3:00 PM  

आपकी लिखी रचना  ब्लॉग "पांच लिंकों का आनन्द" सोमवार 27 सितम्बर    2021 को साझा की गयी है....
पाँच लिंकों का आनन्द पर
आप भी आइएगा....धन्यवाद!

Sweta sinha 9/27/2021 9:21 PM  

काश!
कैद करना
अपनी इच्छाओं को
आसान होता
न रिसती
ख़्वाहिशें फिर
पर क्या सचमुच
निर्लिप्त,तटस्थ जीवन
जीने का कोई
अरमान होता?
---
सादर।

रेणु 9/27/2021 11:57 PM  

बहुत बढिया दीदी | वीतरागी हिय की पीर की सरस अक्कासी !
कभी इससे मिलती-जुलती बात मैंने भी लिखी थी -------
बेहाल था बेज़ार था , अब तलक तो दुनिया से मैं
तुमने भी ठोक दी आख़िरी कील
मेरे ऐतबार में !!
लिखते रहिये | मेरी शुभकामनाएं|

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