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फंदे सोच के

>> Thursday, January 15, 2009


वक्त की सलाइयों पर
सोचों के फंदे डाल
ज़िन्दगी को बुन दिया है
इसी उम्मीद पर कि
शायद
ज़िन्दगी मुकम्मल हो सके
जैसे कि एक स्वेटर
मुकम्मल हो जाता है
सलाइयों पर
ऊन के फंदे बुनते हुए ।
परन्तु-
ज़िन्दगी कोई स्वेटर तो नही
जो फंदे दर फंदे
बुनते - बुनते
मुकम्मल हो जाए.

7 comments:

के सी 1/15/2009 11:27 PM  

haan jaroor sweater naheen kintu iske fande avashy hi sweater jaise hai, aapne sach kaha waqt ki salaaeeyan hi daalti hi fande , bimb achch hai, badhai

taanya 1/16/2009 12:35 PM  

Zindgi ko her pehlu me dhaalne ki apki kala saraahniye hai..
kash such me hi sweater ki tareeh zindgi b mukammal ho pati..

aur sangeeta ji ye doll kaha se layi he ise to aap mujhe hi de do..i love it.

निर्झर'नीर 1/16/2009 1:30 PM  

bahot sundar abhivyakti..
bejod..khayal ekdam naya or gahra.

प्रदीप मानोरिया 1/17/2009 9:52 PM  

बहुत सही गीत लिखा आपने स्वेटर की ज़िंदगी से तुलना की है बहुत बढिया

पूनम श्रीवास्तव 1/17/2009 11:44 PM  

Respected Sangeeta ji,
bahut achchhee kavita hai.....jindagee koi svetar to naheen jo binte binte mukammal ho jaya.Badhai.
Poonam

Meena Bhardwaj 9/19/2022 4:33 PM  

स्वेटर की बुनावट के साथ ज़िन्दगी की बुनावट .., बहुत हृदयस्पर्शी लगी । बहुत सुन्दर कविता । सस्नेह वन्दे !

Sudha Devrani 9/22/2022 7:19 PM  

वक्त की सलाइयों पर सोच के फन्दे से जिन्दगी बुनती ही जा रही...हर दिन बदलती सोच से बुनाइयों के विभिन्न डिजाइनों के शायद मुकम्मल भी हो जाय....
वाह!!!
गहन चिंतनपरक सृजन ।

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