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कुसुम चाहत के

>> Thursday, January 29, 2009



वृथा ही मैंने

चाहत के कुसुम चुन लिए ,

जिनमें कोई गंध नही थी ।

मात्र मन लुभाने का

हुनर था।

कुछ ताज़गी थी ,

कुछ रंग थे

जिन्हें देख कर

मन हुआ कि

उठा कर

अंजुरी भर लूँ ,

और मैं -

मंत्रमुग्ध सी

मन की अंजुरी

भर लायी ।

पर थे तो पुष्प ही न

मुरझा गए

कुम्हला कर हो गए

बेरंग से ,

और अब न

सहेजते बनता है

और न फेंकते ,

ज़िन्दगी !

ज़िन्दगी भी आज

बेरौनक सी हो गई है।



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धुंधली लकीरें

>> Wednesday, January 21, 2009




लोग कहते हैं कि -

हथेली की लकीरों में

किस्मत लिखी होती है ।

मेरी किस्मत भी

स्याह स्याही से लिखी थी ।

फिर भी लकीरें

धुंधली हो गयीं ।

और अब

मेरी किस्मत

कोई पढ़ नही पाता ।

धुंधली होती लकीरें

एक जलन का

एहसास कराती हैं

और मुझे

तन्हाई में ले जाती हैं

जहाँ मैं ख़ुद ही,

ख़ुद को नही पढ़ पाती ।

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फंदे सोच के

>> Thursday, January 15, 2009


वक्त की सलाइयों पर
सोचों के फंदे डाल
ज़िन्दगी को बुन दिया है
इसी उम्मीद पर कि
शायद
ज़िन्दगी मुकम्मल हो सके
जैसे कि एक स्वेटर
मुकम्मल हो जाता है
सलाइयों पर
ऊन के फंदे बुनते हुए ।
परन्तु-
ज़िन्दगी कोई स्वेटर तो नही
जो फंदे दर फंदे
बुनते - बुनते
मुकम्मल हो जाए.

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जश्न -ऐ - बर्बादी

>> Monday, January 5, 2009


आओ

आज हम अपनी

बर्बादियों का जश्न मनाएँ

खुशियों में तो लोग

जश्न मनाते हैं

और ग़म को

अकेले ही पी जाते हैं

पर ,

आज कुछ नया करें

अपनी बर्बादियों में

सबको शामिल करें

बर्बाद करने वालों को

जश्न में बुलाएं

और उनके ही हाथों

पहला जाम टकरायें ,

कुछ इस तरह जश्न मनाएँ

कि ,

बर्बादियों को भी शर्म आए

आओ आज हम

अपनी बर्बादियों का जश्न मनाएँ

थोड़ा झूमें और कुछ गुनगुनाएं

यूँ --

अपनी बर्बादियों का जश्न मनाएं .

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हमारी वाणी

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