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आभासी दुनिया के वास्तविक रिश्ते

>> Wednesday, April 7, 2010



जी हाँ , आभासी दुनिया ..यानी कि काल्पनिक ...लेकिन काल्पनिक  जो पूरी तरह से काल्पनिक नहीं होती ..आज  मैं बात कर रही हूँ इस अंतरजाल पर बने रिश्तों की ..आज बात करना चाह रही हूँ शिखा  वार्ष्णेय  की .
शिखा से लेखन के ज़रिये सबसे पहली मुलाक़ात हुई ऑरकुट की "सृजन का सहयोग" कम्युनिटी पर ...उसके लेखन और मेरी सोच में कहीं न  कहीं साम्य नज़र आता था...जिज्ञासावश ऑरकुट का ही जब उसका प्रोफाइल  देखा तो लगा कि लन्दन  में रहने वाली लड़की से (मेरे लिए तो लड़की जैसी ही है ) बात  मात्र हैल्लो तक के परिचय तक ही सीमित रह जाएगी .....कहाँ मास्को  में शिक्षा प्राप्त शिखा  और कहाँ मैं उत्तर प्रदेश से पढ़ी हुई..:):) ..और फिर उम्र का अंतर तो था ही....
पर ना जाने कब और कैसे परिचय में प्रगाढ़ता  आती चली गयी .. उसके अपनेपन ने कब मुझे उसकी दीदी बना दिया और वो मेरी छोटी बहन बन गयी ...पता ही नहीं चला ..
इस अंतरजाल पर ही हमारी बातें और मुलाकातें होती रहीं ...अपने सुख - दुःख  सब आपस में कब और कैसे बांटने लगे ...एहसास ही नहीं है...
अभी जब उसको भारत आना था तो प्रबल इच्छा थी कि  एक बार मुलाक़ात हो जाये ....कुछ समय के लिए भारत आने वालों के पास समयाभाव होता है और दिल्ली में एक स्थान से दूसरे स्थान की दूरी भी कुछ कम नहीं होती ..
पर आज यह कहावत चरितार्थ हो ही गयी.....जहाँ चाह वहाँ राह ....
आज सुबह ११  बजे के करीब  शिखा का फ़ोन  आया कि ----  दी , आप घर पर हो ना , मैं आ रही हूँ आपसे मिलने............  आप स्वयं ही अनुमान लगा सकते हैं कि मेरी ख़ुशी का ठिकाना नहीं था...जल्दी जल्दी सारे काम निपटा कर बस इंतज़ार शुरू ..................जैसे पल - पल बीत ही नहीं रहा था...आखिर  पहली बार मिलने जा रहे थे .
खैर घर ढूँढते ढूँढते  ( हांलांकि  ज्यादा नहीं ढूंढना पड़ा ) जब शिखा मुझसे मिली  तो ऐसा लगा कि  ना जाने कितनी खुशियाँ एक साथ मेरी झोली में समाँ  गयीं हैं ...... करीब तीन घंटे हम साथ रहे ...हर पल जीवंत हो उठा था आप भी उन पलों के गवाह बनें  और आनंद लें ....


उन सीमित क्षणों में  ना जाने कितना कुछ कहने को था ........ये  आभासी रिश्ते  आज वास्तविकता के धरातल पर बहुत सुखद लग रहे थे .....बस आज इतना ही....



http://charchamanch.blogspot.com/2010/04/blog-post_07.html

31 comments:

Udan Tashtari 4/07/2010 12:27 AM  

अरे वाह!!यह तो बढ़िया मिलन हो गया. आपके बाजू में जो लाल डायरी रखी है, वो कविताओं की है क्या? (बस, ऐसे ही दिल किया जानने का कि कविताओं का आदान प्रदान चला कि नहीं)

क्या खिलवाया पिलवाया-वो भी तो बताईये तो आने का लालच बढ़े. :)

जरा विस्तार से पोल पट्टी बताईये शिखा जी की...देखा नहीं क्या अदा जी ने तो हमारा इतिहास/भूगोल सब लिख दिया मिलन रिपोर्ट में. :)

अनामिका की सदायें ...... 4/07/2010 12:28 AM  

अभी समीर जी और अदा जी की मुलाकात वाली पोस्ट पढ़ी और इतने ही आप की शिखा जी से मुलाकात की पोस्ट . बस अभी उन लोगो की मुलाकात की कल्पनाये थी और अब आपकी मुलाकात की कल्पनाये..सच में दिल किया की मै भी इन मुलाकातों का हिस्सा होती. सच में हम इस अंतरजाल से एक-दुसरे के कितने करीब आ गए है...और जब मिलते है तो लगता ही नहीं की पहली मुलाकात है. बहुत अच्छा लगा आपका ये एहसास .और आपके फोटो...बधाई.

संगीता पुरी 4/07/2010 12:31 AM  

शिखा जी ने अपनी दिल्‍ली यात्रा का जिक्र अपनी पोस्‍ट में किया था .. आप दोनो का मिलना बहुत अच्‍छा रहा .. पत्र मित्रता की खूबियों को भी बहुतों ने अनुभव किया था .. उसी तरह इंटरनेट का आभासी रिश्‍ता भी वास्‍तविक होता दिख रहा है .. इसे किसी की नजर न लगे !!

संगीता स्वरुप ( गीत ) 4/07/2010 12:31 AM  

समीर जी ,
जी हाँ पुस्तक आपने खूब पहचानी...कविताओं की ही है....अब कविताओं का आदान प्रदान तो अंतरजाल पर ही हो जाता है....और रही खिलाने पिलाने की बात तो वो तो आ कर ही जानियेगा....निराशा नहीं मिलेगी :):) और पोल पट्टी....तो कुछ तो राज़ रहना चाहिए ना ....:):)

दिलीप 4/07/2010 1:16 AM  

sundar abhivyakti....

http://dilkikalam-dileep.blogspot.com/

स्वप्न मञ्जूषा 4/07/2010 1:51 AM  

are waah ye bhi khoob rahi ...
mazaa aagya dekh kar ..sachmuch aabhaasi duniya mein jo rishte ban rahe hain wo kamaal ke ban rahe hain...
bahut aabhaar aapka..

M VERMA 4/07/2010 4:43 AM  

बहुत खूब
यह भी तो ब्लागर मिलन ही है
और फिर
रिश्ते आभासी क्यों होंगे भला

डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक' 4/07/2010 6:20 AM  

चलिए आपको रिश्तों का आभास तो है!
बढ़िया संस्मरण!

Dev 4/07/2010 7:32 AM  

वाह ! आप लोगों का मिलन देख कर बहुत ....अच्छा लगा .

बाल भवन जबलपुर 4/07/2010 10:38 AM  

सच ऐसे उर्ज़ादायी कई ब्लागर्स के बीच बने है

rashmi ravija 4/07/2010 10:59 AM  

अरे वाह...मिल भी लीं आपलोग...दिल्ली पहुँचते ही लगता है...शिखा ने सबसे पहला काम यही किया है...वो भी आपसे मिलने को उतनी ही बेताब थी...सच समय का तो पता ही नहीं चला होगा...बहुत अच्छी लगी आपलोगों की मिलने का विवरण और तस्वीरें देख कर...

Anil Pusadkar 4/07/2010 11:24 AM  

सच मे आभासी दुनिया से निकल क्र कोई जब सामने आ खड़ा होता है तो विश्वास करना मुश्किल हो जाता है और उसके बाद जो मिलन होता है उसका प्यार खत्म होने का नाम नही लेता,छोटी सी मुलाकात जब खतम होती है तब लगने लगता है कि ये ये आभासी दुनिया के रिश्ते हक़ीकत की दुनिया से ज्यादा मज़बूत हैं।हम लोगों को भी मौका मिला है ऐसे ही रिश्तों के अनुभव का।

दिगम्बर नासवा 4/07/2010 11:56 AM  

रिश्ते पानी में रेत की तरह होते हैं ... चुप-चाप घर कर लेते हैं .. पता ही नही चलता ....
बहुत अच्छा लगा पनपते रिश्तों के बारे में जान कर .... आप दोनो को शुभ-कामनाएँ ....

अजित गुप्ता का कोना 4/07/2010 12:04 PM  

संगीता जी, मेनू तो बताना ही पड़ेगा। जिस से हम भी लिस्‍ट लेकर ही कहीं जाए। बता तो दे सामने वाले को कि देखो समीर जी के यहाँ यह मेनू था और संगीता जी के यहाँ यह। आगे परम्‍परा तो निभानी पड़ेगी ना। आप दोनों को ढेर सारी बधाई। बस इसी प्रकार हम सब एक परिवार बने रहें।

संगीता स्वरुप ( गीत ) 4/07/2010 12:25 PM  

अजीत जी,

:):)

अब समीर जी के यहाँ का मेनू तो अदाजी ने बयां किया ना.....तो मैं यहाँ कैसे लिखूं???????????? पर मेरे घर आने में इतना सोचने की ज़रूरत नहीं.....निराश नहीं होंगे....बस इतना ही कह सकती हूँ :):))

रंजू भाटिया 4/07/2010 12:40 PM  

यह तो बहुत बढिया रहा रिश्ते कब यूँ दिल में बस जाते हैं कोई नहीं जान सकता ..बहुत अच्छा लगा पढ़ कर

Akshitaa (Pakhi) 4/07/2010 1:03 PM  

जब सब लोग मिल रहे हैं तो हम भी कभी मिलेंगे. फिर खूब लिखियेगा हमारे बारे में भी .


_________________________
'पाखी की दुनिया' में जरुर देखें-'पाखी की हैवलॉक द्वीप यात्रा' और हाँ आपके कमेंट के बिना तो मेरी यात्रा अधूरी ही कही जाएगी !!

शेफाली पाण्डे 4/07/2010 3:24 PM  

achchaa to mil bhi liye aap log...badhiya hai...

RADHIKA 4/07/2010 5:46 PM  

अरे वाह! रिश्ते इस तरह भी बनते हैं ,पढ़कर अच्छा लगा ,आपको इस नए रिश्ते के लिए बधाई ,ईश्वर करे आपका यह रिश्ता हमेशा इसी तरह बना रहे

vandana gupta 4/07/2010 5:56 PM  

yahi to rishton ki garima hai kab kaun chupke se kaise paanv pasar le dil mein pata hi nahi chalta aur jab milan ho to kahna hi kya hai.

Taru 4/07/2010 7:20 PM  

wowwwwwwwwwwwwwwwwwwwwwwwwwwwwwwwwwwwwwwwwwwwwwwwwwwwwwwwwwwwwwwwwwwwwwwwwwwwwwwwwwwwwwwwwwwwwwwwwwwwwwwwwwwwwwwwwwwwwwww !!

Shikha di.........Getting super jealous haan.........hehhehe.............i was saying to mumma k agar hum sb sath mein milte to kitna dhoom dhamaal hta na fir dwarka mein...........;D :D :D

hehehhehe.............

Khushdeep Sehgal 4/08/2010 10:05 AM  

संगीता जी,
चश्मेबद्दूर...यही कामना है कि ये स्नेह हमेशा बना रहे...

शिखा जी दिल्ली में थीं, हमें भी ख़बर मिलती तो खुद ही मिलने आ जाते...

एक बात और, समीर जी भी कयामत की नज़र रखते हो...खाने की चीज हो या कविता की किताब, हज़ारों किलोमीटर दूर से ही ताड़ लेते हैं...

जय हिंद...

Khushdeep Sehgal 4/08/2010 10:06 AM  

संशोधन
समीर जी भी कयामत की नज़र रखते हो में हो की जगह हैं पढ़ा जाए...

जय हिंद...

Urmi 4/08/2010 5:17 PM  

बहुत ही सुन्दर और बढ़िया संस्मरण ! लाजवाब प्रस्तुती! बहुत बहुत बधाई!

डॉ. महफूज़ अली (Dr. Mahfooz Ali) 4/08/2010 10:51 PM  

आदरणीय संगीता जी....

बहुत दिनों के बाद मैं वापिस आ गया हूँ..... शिखा जी से यह मुलाक़ात बहुत अच्छी लगी..... अब जो पोस्ट्स आपकी छूट गयीं हैं.....वो सब पढने जा रहा हूँ.....

सादर

महफूज़...

कविता रावत 4/09/2010 10:50 AM  

sundar chitrmay prastuti ke liye haardik subhkamnayne..

कमलेश वर्मा 'कमलेश'🌹 4/09/2010 10:25 PM  

SANGEETA JI IS TARAH MILNE KA ANAND KUCHH AUR HI HOTA HAI ..MERE SATH BHI AISA HI HUA THA LOK-SANGHRSH WALE ''SUMAN JI ''PATIALA SHUAIB JI KE SATH AAYE THE ...BADA ROMANCH HOTA HAI ..IS TARAH KI MULAKATON ME ...SUNDER

पूनम श्रीवास्तव 4/11/2010 7:19 AM  

खूबसूरत संस्मरण की बढ़िया प्रस्तुति----

रावेंद्रकुमार रवि 4/12/2010 10:50 PM  

आप दोनों को
एक साथ देखकर बहुत अच्छा लगा!

निर्झर'नीर 4/13/2010 3:17 PM  

दिगम्बर नासवा ji ne bahut sahi shabdon mein risto ko utara hai ...

@ रिश्ते पानी में रेत की तरह होते हैं ... चुप-चाप घर कर लेते हैं"

bahut accha laga ye milan ..shikha ji se april last year hum bhi mile the yakinan prabhavi vyaktitav hai unka

shikha varshney 5/04/2010 3:18 PM  

अब मैं क्या कहूँ ...जो भी कहूँगी कम ही पड़ेगा..आपका स्नेहिल साथ अब तक ज़हन में बसा हुआ है ....बस दुआ है ..आपका प्यार यूँ ही मुझे मिलता रहे.

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