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संधि - विच्छेद

>> Tuesday, October 5, 2010



कुछ  सम्बन्ध 

बन जाते हैं 

यकायक 

और कुछ को 

पड़ता है बनाना 

या यूँ कहें कि 

बना दिए जाते हैं 

जो सम्बन्ध 

उनको पड़ता है 

निबाहना ,


और इस 

निबाहने की 

प्रक्रिया में 

कहाँ हो पाती है 

संबंधों में संधि  ?


सिर के ऊपर की 

एक छत 

सम्बन्ध के विच्छेद को 

दृष्टिगत नहीं होने देती .

एक साथ रह कर भी 

एक दूसरे से 

निबाहते हुए 

कभी एक होने नहीं देती .

भावनाएं मर जाती हैं 

प्रेम पनपता ही नहीं 

फिर भी लोग 

कहते है कि

सम्बन्ध - विच्छेद 

हुआ ही नहीं ..


और इसी तरह 

ढोते  चले जाते हैं 

भार ज़िन्दगी का 

शायद संधि होती है तब 

जब विच्छेद होता है 

आत्मा और शरीर का .....





79 comments:

vandana gupta 10/05/2010 5:37 PM  

शायद संधि होती है तब

जब विच्छेद होता है

आत्मा और शरीर का .....

बेहद गहन और सूक्ष्म अभिव्यक्ति……………हर अनकहा कह दिया और वो भी बडी सादगी के साथ मगर गंभीरता बरकरार रखी।

Majaal 10/05/2010 5:45 PM  

यह तो पूरी तरह से बुद्धि विच्छेदक कल्पना है !

बहुत खूब , लिखते रहिये ...

वीरेंद्र सिंह 10/05/2010 5:46 PM  

सत्य ... अक्सर जीवन में ऐसा होता है .
वर्तमान जीवन के सन्दर्भ में सार्थक रचना .
आभार ..............

Anonymous,  10/05/2010 6:03 PM  

bahut hi khubsurat rachna..... aapka lekhan hamesha mere liye prerna shrot raha hai...
mere is vichaar par aapki tippani chahunga.....
http://i555.blogspot.com/2010/10/blog-post_04.html#comments

monali 10/05/2010 6:06 PM  

Haan aur kai baar humein bhi nahi pata hota h k samandh hai ya vichchhedit ho chuka h.. beatiful poem as always...

वीना श्रीवास्तव 10/05/2010 6:11 PM  

और इसी तरह

ढोते चले जाते हैं

भार ज़िन्दगी का

शायद संधि होती है तब

जब विच्छेद होता है

आत्मा और शरीर का...

बहुत गहन भाव और गहन अभिव्यक्ति

ashish 10/05/2010 6:20 PM  

संबंधो के सम्बन्ध में एक खूबसूरत कविता . वो तो हमेशा ही खूबसूरत होती है . खूबसूरत सम्बन्ध है आपका , आपकी लेखनी से .

DR.ASHOK KUMAR 10/05/2010 6:29 PM  

गहरी दृष्टिपूर्ण, विचार उत्प्रेरक अभिव्यक्ति के लिए बहुत-बहुत आभार। -: VISIT MY BLOG :- जमीँ पे है चाँद छुपा हुआ।...........कविता को पढ़कर अपने अमूल्य विचार व्यक्त करने के लिए आप सादर आमंत्रित हैँ। आप इस लिँक पर क्लिक कर सकती हैँ।

Kailash Sharma 10/05/2010 7:00 PM  

भावनाएं मर जाती हैं

प्रेम पनपता ही नहीं

फिर भी लोग

कहते है कि

सम्बन्ध - विच्छेद

हुआ ही नहीं ..
......क्या खूब संबंधों की वास्तविकता का चित्रण किया है....बहुत सशक्त अभिव्यक्ति....आभार .

shikha varshney 10/05/2010 7:04 PM  

जब विच्छेद होता है

आत्मा और शरीर का .
दी ! कई बार तो इसके बाद भी संधि नहीं होती. रिश्ता बनना और उसे निभाना दो अलग बातें है ..अपने बहुत सहजता से समझा दिया .
बहुत ही खूबसूरत अभिव्यक्ति है.

rashmi ravija 10/05/2010 7:07 PM  

फिर भी लोग
कहते है कि
सम्बन्ध - विच्छेद
हुआ ही नहीं ..

यही तो चक्कर है....मजबूरी के रिश्ते लोगों को नज़र नहीं आते...बहुत ही गहन भाव छुपा है कविता में.

S.M.HABIB (Sanjay Mishra 'Habib') 10/05/2010 7:39 PM  

"रिसते रिश्ते". गहराई से आती रचना, गहराई तक जाती रचना.....

राज भाटिय़ा 10/05/2010 8:02 PM  

ऎसे रिश्तो से तो सम्बंध विच्छेद ही अच्छा, दोनो खुल कर तो जी सके , बहुत अच्छी लगी आप की रचना, धन्यवाद

अनामिका की सदायें ...... 10/05/2010 8:13 PM  

चाहे अनचाहे रिश्तों पर गूढ़ मनन की हुई सशक्त अभिव्यक्ति.

बधाई.

राजेश उत्‍साही 10/05/2010 8:15 PM  

सही कहा आपने पहले संधि तो हो।

प्रवीण पाण्डेय 10/05/2010 8:59 PM  

गहरे भावों की भाषा।

उपेन्द्र नाथ 10/05/2010 9:20 PM  

बहुत ही सुन्दर अभिव्यक्ति......अनचाहे रिश्ते पर अच्दी कविता

Sadhana Vaid 10/05/2010 9:28 PM  

बहुत ही सशक्त अभिव्यक्ति ! कितनी सच्ची बात कह दी आपने ! जाने कितने संबंध ऐसे होते हैं जो जुड़े होने का भ्रम तो ज़रूर देते हैं लेकिन कहीं से भी जुड़े नहीं होते !

सिर के ऊपर की

एक छत

सम्बन्ध के विच्छेद को

दृष्टिगत नहीं होने देती

एक बहुत ही सच्ची और ईमानदार प्रस्तुति ! बधाई !

सम्वेदना के स्वर 10/05/2010 9:34 PM  

संगीता दी, एक नंगा सच बयान किया है आपने… अपने आस पास देखे हैं ऐसे रिश्ते जिनसे रिसता है रक्त और फैलती है बदबू… क्योंकि इन संबंधों में एक और बिरवा भी फूट चला है और अब तो संधि भी नहीं हो पा रही है और विच्छेद भी नहीं.. बस ढो रहे हैं दोनों सलीब सम्बंधों (?) के. मुझे तो यह कविता सच्चाई के बहुत क़रीब लगी.

उम्मतें 10/05/2010 9:45 PM  

नई तरह के संबंधों की तरफ इशारा किया है आपनें जिनसे हर कोई मुंह छुपाना चाहता है पर आखिर को निबाहना ही पड़ते हैं :)

महेन्‍द्र वर्मा 10/05/2010 10:00 PM  

ज़िदगी के यथार्थ को कविता के माध्यम से आपने बखूबी उद्घाटित किया है।

चला बिहारी ब्लॉगर बनने 10/05/2010 10:49 PM  

बहुत दिन पहिले एगो सिनेमा आया था बासु भट्टाचार्य्य का गृह प्रवेश. हमरा फेवरेट सिनेमा के लिस्ट में से एक. अईसने जटिल सम्बंध का कहानी था. एक जगह कहा गया था कि इस तरह का सम्बंध में साथ साथ चलते चलते, पास पास रह जाता है लोग. आज आपके कविता में तीन घण्टा का पूरा सिनेमा समा गया. संगीता दी, एक और ख़ूबसूरत कविता.

kshama 10/05/2010 11:33 PM  

Aah! Kitne vidarak saty se ru b ru karaya hai aapne!Aur kitni kushaltase!

Unknown 10/06/2010 12:24 AM  

संबंधों को साकार करती सार्थक रचना के लिए बधाई !

मनोज कुमार 10/06/2010 12:55 AM  

संबंध में समझौते होते ही हैं। करने ही पड़ते हैं। हाम विच्छेद हमारी मनसिकता की उत्पत्ति है।

डॉ. मोनिका शर्मा 10/06/2010 1:50 AM  

मौजूदा दौर में यही स्थिति है.... सही चित्रण ......

Kusum Thakur 10/06/2010 4:52 AM  

अपने भाव को बहुत ही सहजता से लिख डाला ....धन्यवाद !!

वाणी गीत 10/06/2010 5:12 AM  

शायद संधि होती है जब आत्मा और शरीर का विच्छेद होता है ...
रिश्तों में ऐसे संधि विच्छेद होने तो नहीं चाहिए , मगर होते भी हैं ....
गणितीय शब्दावली पर एक बहुत ही अनूठा बिम्ब ...
आभार ..!

रेखा श्रीवास्तव 10/06/2010 6:36 AM  

आपने संदी और संधि विच्छेद और संधि को जीवन में परिभाषित बहुत सुन्दर शब्दों में किया है और एकदम सही रूप से किया . एक नहीं कितने जीवन isi तरह से चल रहे हैं और दुनियाँ के नजर में भ्रम में जी रहे हैं.

Udan Tashtari 10/06/2010 6:55 AM  

विचार जगाती रचना...बधाई.

कुमार संतोष 10/06/2010 7:57 AM  

बहुत ही खूबसूरत अभिव्यक्ति है !

और हर शब्द में बहुत ही गहराई है !

कुमार संतोष 10/06/2010 8:00 AM  

बहुत सुंदर कविता और मुझे तो इतना पसंद आया की इस ब्लॉग का अनुसरण किये बिना रह नहीं सकता !

Anonymous,  10/06/2010 8:30 AM  

kuch baaton ka jawaab sirf maun hota hai......ye bhi aisi ho kuch hai

touched me....

पी.सी.गोदियाल "परचेत" 10/06/2010 10:16 AM  

बहुत बेहतरीन रचना सत्य मगर
कुछ अपवादों के साथ :)

सदा 10/06/2010 10:35 AM  

शायद संधि होती है तब

जब विच्छेद होता है

आत्मा और शरीर का .....

बहुत ही गहन एवं भावमय प्रस्‍तुति ।

Shabad shabad 10/06/2010 11:13 AM  

एक खूबसूरत कविता -संबंधो के सम्बन्ध में !!

निर्झर'नीर 10/06/2010 11:20 AM  

एक छत
सम्बन्ध के विच्छेद को
दृष्टिगत नहीं होने देती .
एक साथ रह कर भी
एक दूसरे से
निबाहते हुए
कभी एक होने नहीं देती .
भावनाएं मर जाती हैं
प्रेम पनपता ही नहीं
फिर भी लोग
कहते है कि
सम्बन्ध - विच्छेद
हुआ ही नहीं ..

कितनी हकीक़त है आपके शब्दों में यूँ लगता है जैसे जिंदगी को चंद शब्दों में समेट दिया हो किसी ने ,,घुटन ,तड़फ ,त्याग ,वेदना ,प्यार ऐसा लगता है की सारे के सारे अहसासएक ही पंक्ति में निचोड़ के भर दिए है ...बहुत असर करती है ये रचना .

रानीविशाल 10/06/2010 11:45 AM  

बहुत गहरे भाव लिए बहुत सशक्त अभिवयक्ति है दी , एक इंसान अपनी एक ही ज़िन्दगी में नजाने कितने रिश्तों को निभाता है कुछ सहज ही समां जाते है अंतर्मन की गहराइयों में लेकिन कुछ की जटिलता जीवन में द्वंद कर देती है ....इन जटिल रिश्तों की जटिलता को बहुत सरलता से स्पष्ट करती है आपकी कविता .....हर बार की तरह लाजवाब .

ज्योत्स्ना पाण्डेय 10/06/2010 12:38 PM  

विचारणीय अभिव्यक्ति!


शुभकामनाएं...

arvind 10/06/2010 12:52 PM  

bahut sundar kavita--sandhi vichhed ke marm ko darsaati hui.

Aruna Kapoor 10/06/2010 1:48 PM  

...aapne to samaaj ko aainaa dikhaa diya hai sangitaji!...maarmik rachana, badhaai!

कविता रावत 10/06/2010 6:24 PM  

बहुत सुन्दर प्रभावपूर्ण प्रस्तुति ....

Unknown 10/06/2010 8:09 PM  

bahut sundar....

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रश्मि प्रभा... 10/06/2010 10:56 PM  

निबाहने की

प्रक्रिया में

कहाँ हो पाती है

संबंधों में संधि ?
ho hi nahi sakti....

हास्यफुहार 10/07/2010 9:01 AM  

बहुत अच्छी प्रस्तुति।

शाहिद मिर्ज़ा ''शाहिद'' 10/07/2010 11:14 AM  

संधि होती है तब
जब विच्छेद होता है
आत्मा और शरीर का ....

सच कहा आपने...
याकूब मोहसिन साहब का...
एक शेर याद आ रहा है-
दिल ही न मिलेंगे तो सफ़र कैसे कटेगा
दुनिया ने तो रिश्तों में हमें बांध दिया है.

SATYA 10/07/2010 11:41 AM  

बहुत अच्छी रचना,


यहाँ भी पधारें:-
ऐ कॉमनवेल्थ तेरे प्यार में

निर्मला कपिला 10/07/2010 11:57 AM  

फिर भी लोग

कहते है कि

सम्बन्ध - विच्छेद

हुआ ही नहीं ..

बहुत गहरे भाव सुन्दर, सटीक रचना। शुभकामनायें।

समयचक्र 10/07/2010 3:55 PM  

रिश्तों की संधि....... बहुत ही भावपूर्ण रचना अभिव्यक्ति ......

Urmi 10/07/2010 9:01 PM  

सुन्दर भाव और अभिव्यक्ति के साथ बेहतरीन रचना! बहुत बढ़िया लगा!

पूनम श्रीवास्तव 10/07/2010 10:30 PM  

Adaraniya Sangita Di,
Bahut hi behatareen dhang se apne sambandhon ka vishleshan kiya hai apnee is rachna men...sundar aur prabhavshali lagi apki yah abhivyakti.
Poonam

देवेन्द्र पाण्डेय 10/08/2010 8:08 AM  

शायद संधि होती है तब

जब विच्छेद होता है

आत्मा और शरीर का .....
...यहाँ समझौता वहाँ संधी, बहुत खूब।

पुष्यमित्र उपाध्याय 10/08/2010 9:46 AM  

हमेशा की तरह ....सुन्दर रचना!

प्रतिभा सक्सेना 10/08/2010 10:45 AM  

बहुत सहजता से सच को थाहती हैं आप .

प्रतिभा सक्सेना 10/08/2010 10:46 AM  

बहुत सहजता से सच को थाहती हैं आप .

deepti sharma 10/08/2010 7:18 PM  

sab kuch kah diya aapne
har bhav
apko navratri ki subhkamnaye

Asha Lata Saxena 10/08/2010 7:22 PM  

बहुत खूब लिखा है |बधाई
आशा

hem pandey 10/08/2010 7:54 PM  

प्रेम पनपता ही नहीं

फिर भी लोग

कहते है कि

सम्बन्ध - विच्छेद

हुआ ही नहीं ..

- सब की नहीं ,लेकिन कुछ की यही कहानी है |

अनुपमा पाठक 10/09/2010 12:28 PM  

bahut sundar abhivyakti!
sambandhon ki swatah sfhurt'ta ho to vikshed kabhi nahi hota...
sambandhon se sambandhit sateek rachna!

मनोज भारती 10/09/2010 9:37 PM  

बिन प्रेम के हुई संधि (विवाह) और विच्छेद (तलाक) का मनोवैज्ञानिक चित्रण ...

वन्दना अवस्थी दुबे 10/10/2010 12:40 AM  

बना दिए जाते हैं

जो सम्बन्ध

उनको पड़ता है

निबाहना ,
बहुत सुन्दर.

ARUN MISHRA 10/10/2010 1:35 AM  

"थोड़े मन के भाव हैं, कुछ मन के अनुबंध|
विरह-मिलन निरपेक्ष हैं, सरल-जटिल सम्बन्ध||"
अच्छी रचना; नवरात्रि की शुभकामनायें|
- अरुण मिश्र.

विनोद कुमार पांडेय 10/10/2010 9:25 AM  

संबंधों की व्याख्या करती एक सुंदर रचना..बधाई संगीता जी!!!

रचना दीक्षित 10/10/2010 2:12 PM  

गहरे भावों की बहुत ही सुन्दर अभिव्यक्ति.पर न जाने क्यों विच्छेद के बाद वो हमें और भी कुरेदते हैं

शरद कोकास 10/11/2010 12:39 AM  

सम्बन्धों पर बहुत अच्छी रचना ।

हरीश झरिया 10/11/2010 2:14 PM  

यही तो मानव जेएवन का यथार्थ है… मन को छूने और मस्तिष्क को ख्वगालने वाली रच्ना…

Apanatva 10/11/2010 6:21 PM  

ek sashakt rachana........

mridula pradhan 10/13/2010 12:35 PM  

bahot achcha likhin hain aap.

Anonymous,  10/14/2010 1:25 AM  

"बना दिए जाते हैं
जो सम्बन्ध
उनको पड़ता है
निबाहना"
और इस
निबाहने की
प्रक्रिया में
कहाँ हो पाती है
संबंधों में संधि ?"

एकदम सच्ची बात.. जो सम्बन्ध निबाहने पड़े उनमे संधि हो ही नहीं सकती... बहुत ही भावपूर्ण रचना

रंजना 10/22/2010 4:21 PM  

क्या कहूँ ??????

Suman 10/24/2010 5:58 PM  

bahut hi khubsurat bhav............

प्रिया 11/15/2010 8:29 PM  

dont know I should drop my comment here or not but absolutely your expression has given me new attitude towards relationship.

thanks.

regards,

Priya

Yashwant R. B. Mathur 8/20/2011 12:24 PM  

भावनाएं मर जाती हैं
प्रेम पनपता ही नहीं
फिर भी लोग
कहते है कि
सम्बन्ध - विच्छेद
हुआ ही नहीं ..

बहुत ही अच्छी कविता।

सादर

Vandana Ramasingh 8/21/2011 7:28 AM  

और इसी तरह

ढोते चले जाते हैं

भार ज़िन्दगी का

शायद संधि होती है तब

जब विच्छेद होता है
आत्मा और शरीर का .....
सूक्ष्म एवं गहरी दृष्टि

Nathan White 11/12/2012 5:12 AM  

सुन्दर भाव और अभिव्यक्ति के साथ बेहतरीन रचना! बहुत बढ़िया लगा!

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