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एक सिहरन उम्मीद की

>> Tuesday, June 14, 2011


ज़िंदगी  की  राहें 
और उम्मीद का दामन 
चलते रहते हैं 
साथ - साथ, 
तार - तार 
होने लगती हैं 
जब उम्मीदें 
तब भी 
नहीं छोडते 
उनका साथ ,
निराशा भरे कदम 
ठिठकते तो हैं 
पर रुकते नहीं ,
घिसटते हुए ही सही 
पर चलते रहते हैं 
अनवरत  अपनी 
मंजिल की ओर .
ज़िंदगी के 
न जाने कितने 
ताल- तलैया 
खेत - खलिहान 
नदी - झील 
पार करते हुए
कदम आज 
पहुँच गए हैं 
तपते रेगिस्तान में ,
संघर्ष करते हुए 
हो जायेंगे पार ,
या फिर 
पा जायेंगे कोई 
नखलिस्तान ,
बस इसके लिए 
एक सिहरन उम्मीद की 
काफी है ....




89 comments:

Unknown 6/14/2011 8:17 AM  

शब्दों का बहतरीन चयन, कविता उस यात्रा में ले जाती है जो हम सबकी है , हमारे परिवेश की है, संगीता जी फिर एक संवेदनशील काव्य के लिए बधाई

स्वाति 6/14/2011 8:21 AM  

निराशा भरे कदम
ठिठकते तो है
पर रुकते नहीं,
जीवन के इस सत्य को बहुत ही सहजता से कह दिया|बहुत सुन्दर|बधाई|

ashish 6/14/2011 8:25 AM  

उम्मीद का दामन थामे रहना ही जीवन है . बाधाएं आएँगी और दृढ इच्छाशक्ति से टकराएगी . उम्मीदों के साथ रेगिस्तान में नदिया भी बहाई जा सकती है .

रश्मि प्रभा... 6/14/2011 8:28 AM  

संघर्ष करते हुए
हो जायेंगे पार ,
या फिर
पा जायेंगे कोई
नखलिस्तान ,
बस इसके लिए
एक सिहरन उम्मीद की
काफी है ....
bahut hai ye ummeed

DR.ASHOK KUMAR 6/14/2011 8:31 AM  

एक आस बंधाती हुई बेहतरीन रचना के लिए आभार संगीता दी ।

udaya veer singh 6/14/2011 8:38 AM  

उम्मीदी से करीब होना ही सार्थकता है जीवन की ,जीवन के फलसफे को
बल अवं आश्रय देती रचना प्रभावशाली है / शुक्रिया जी /

मनोज कुमार 6/14/2011 9:02 AM  

बहुत सुंदर भाव।

इस्मत ज़ैदी 6/14/2011 9:10 AM  

तार - तार
होने लगती हैं
जब उम्मीदें
तब भी
नहीं छोडते
उनका साथ ,
निराशा भरे कदम
ठिठकते तो हैं
पर रुकते नहीं ,

वाह !!!!!
बहुत ख़ूब !!!

Dr Varsha Singh 6/14/2011 9:16 AM  

इसके लिए
एक सिहरन उम्मीद की
काफी है ....

आशा का संचार करती संवेदनाओं से भरी बहुत सुन्दर कविता....हार्दिक बधाई.

प्रतिभा सक्सेना 6/14/2011 10:01 AM  

बिलकुल ठीक कहा .
'आसा तिसना ना मरी कह गए दास कबीर!

ZEAL 6/14/2011 10:05 AM  

पूरी दुनिया ही आशा के ऊपर टिकी हुयी है। जब दिलों में उम्मीद होती है तो तपता हुआ रेगिस्तान भी नखलिस्तान लगता है।

Suman 6/14/2011 10:19 AM  

निराशा भरे कदम
ठिठकते तो है
पर रुकते नहीं,
बिलकुल सही कहा है !
सुंदर रचना .........

Maheshwari kaneri 6/14/2011 10:36 AM  

संघर्ष करते हुए
हो जायेंगे पार ,
या फिर
पा जायेंगे कोई
नखलिस्तान ,
बस इसके लिए
एक सिहरन उम्मीद की
काफी है ....
बहुत सुन्दर शब्दों में आपने अपने मन के भाव को ंबा्घा है.....सुन्दर|बधाई|

Sadhana Vaid 6/14/2011 11:13 AM  

आशा निराशा की पेंगों के साथ झूला झुलाती ज़िंदगी की रुकती चलती ठिठकती दौडती जीवन यात्रा का बहुत सुन्दर शब्द चित्र उकेरा है आपने रचना में ! बहुत ही आत्मीय सी रचना सबकी अपनी सी ! ऐसी जिससे सब खुद को जोड़ सकें ! आभार !

Sushil Bakliwal 6/14/2011 11:26 AM  

उम्मीद का दामन हर हाल में हर प्रयत्नशील के साथ चलता ही रहता है । इसके विभिन्न चरणों को इस कविता में इतनी खुबसूरती से पिरोने के लिये आभार सहित...

सदा 6/14/2011 11:53 AM  

बस इसके लिए
एक सिहरन उम्मीद की
काफी है ....

वाह ... बहुत ही सुन्‍दर शब्‍दों का संगम है इस रचना में ।

Arunesh c dave 6/14/2011 11:59 AM  

उम्मीद पर ही टिकी है दुनिया

Dr (Miss) Sharad Singh 6/14/2011 12:24 PM  

ज़िंदगी की राहें
और उम्मीद का दामन
चलते रहते हैं
साथ - साथ,
तार - तार
होने लगती हैं
जब उम्मीदें
तब भी
नहीं छोडते
उनका साथ ,


जीवन के सत्य को प्रतिबिम्बित करती आन्तरिक भावों के सहज प्रवाहमय सुन्दर रचना....

अशोक सलूजा 6/14/2011 12:25 PM  

सुंदर रचना !
जिन्दगी का सफ़र...उम्मीदों पर ही काटा जा सकता है ...

vandana gupta 6/14/2011 12:51 PM  

उम्मीद की एक किरण ही जीने का सामान बन जाती है और इसी पर ज़िन्दगी गुज़र जाती है……………बेहद उम्दा भावों को संजोया है।

Anita 6/14/2011 1:04 PM  

ज़िंदगी की राहें
और उम्मीद का दामन
चलते रहते हैं
साथ - साथ..

जीवन की सच्चाई को खूबसूरती से बयान करती है आपकी रचना ...

devendra gautam 6/14/2011 3:48 PM  

यही उम्मीदें तो इंसान को विपरीत परिस्थितियों का मुकाबला करने की ताकत देती हैं. ये ख़त्म हो जाएं तो फिर सबकुछ ख़त्म. निराशाओं से संघर्ष करते इंसान की मनोदशा को बहुत प्रभावी ढंग से रक्खा है आपने...बधाई!
----देवेंद्र गौतम

shikha varshney 6/14/2011 4:43 PM  

उम्मीद पर दुनिया कायम है और इस उम्मीद को आपने बहुत ही खूबसूरत शब्दों का जामा पहनाया है.
बहुत ही भावपूर्ण रचना के लिए बधाई दी !

सुरेन्द्र सिंह " झंझट " 6/14/2011 4:47 PM  

'निराशा भरे कदम

ठिठकते तो हैं

पर रुकते नहीं '

...............प्रारंभ से अंत तक.... जीवन के यथार्थ का दर्शन.....बड़ी सहजता से प्रस्तुत करती रचना

'आशा ही जीवन है '....का सन्देश देती सुन्दर कृति

Anonymous,  6/14/2011 6:52 PM  

बहुत अच्छा लिखा है जी ऐसे ही लिखते रहे
हमारे कुटिया पर भी दर्शन दे श्री मान

वीना श्रीवास्तव 6/14/2011 8:01 PM  

आस है तो विश्वास है और तभी जीवन है
बहुत ही सुंदर रचना....
आभार...

Kunwar Kusumesh 6/14/2011 8:02 PM  

ज़िंदगी की राहें
और उम्मीद का दामन .

आपकी कविता पढ़ कर मुझे किसी का एक शेर याद आ गया .आप भी देखिये:-

जब कभी हाथ से उम्मीद का दामन छूटा,
ले लिया आप के दामन का सहारा हमने..

डॉ. मोनिका शर्मा 6/14/2011 8:58 PM  

निराशा भरे कदम
ठिठकते तो है
पर रुकते नहीं,

बहुत सुंदर रचना संगीताजी ......

Kishore Kumar Jain 6/14/2011 9:14 PM  

निराशा में भी चलते रहना
आसा का दीप जलाती है
उम्मीदों को मत होने देना तार-तार
उसीपर तो कायम है जीवन
क्यों नहीं मिलेगी मंजिल
उम्मीद पर तो दुनिया कायम है।
किशोर कुमार जैन गुवाहाटी असम

डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक' 6/14/2011 10:08 PM  

बहुत सुन्दर अभिव्यक्ति!

चंद्रमौलेश्वर प्रसाद 6/14/2011 10:13 PM  

उम्मीद छूटी तो समझो ज़िंदगी रूठी :)

Sapna Nigam ( mitanigoth.blogspot.com ) 6/14/2011 10:17 PM  

संघर्ष करते हुए
हो जायेंगे पार ,
या फिर
पा जायेंगे कोई
नखलिस्तान ,
बस इसके लिए
एक सिहरन उम्मीद की
काफी है ....
उम्मीद है तो संघर्ष है.संघर्ष है तो विश्वास है.विश्वास है तो सब कुछ है.जीवन के यथार्थ से परिचय कराती सुन्दर प्रवाहमयी रचना.

डॉ. महफूज़ अली (Dr. Mahfooz Ali) 6/14/2011 10:51 PM  

बेहद ख़ूबसूरत और भावपूर्ण रचना....

वाणी गीत 6/15/2011 6:36 AM  

सिहरन उम्मीद की काफी है ...
आशा और उम्मीद हर हाल में जरुरी है ...
खूबसूरत रचना !

Urmi 6/15/2011 9:17 AM  

निराशा भरे कदम
ठिठकते तो हैं
पर रुकते नहीं ,
घिसटते हुए ही सही
पर चलते रहते हैं
अनवरत अपनी
मंजिल की ओर...
ज़िन्दगी की सच्चाई को बहुत ही सुन्दरता से शब्दों में पिरोया है! हर एक पंक्तियाँ लाजवाब है! बेहतरीन प्रस्तुती!

Kailash Sharma 6/15/2011 2:54 PM  

संघर्ष करते हुए
हो जायेंगे पार ,
या फिर
पा जायेंगे कोई
नखलिस्तान ,
बस इसके लिए
एक सिहरन उम्मीद की
काफी है ....

एक उम्मीद ही पार करा सकती है बड़े से बड़ा मरुथल..बहुत ही संवेदनशील और सार्थक प्रस्तुति..आभार

CS Devendra K Sharma "Man without Brain" 6/15/2011 7:35 PM  

bilkul sahi kaha....ummeed par hi duniya kayam hai....

nar ho na niraash karo mann ko...

bahut saarthak rachna....

प्रवीण पाण्डेय 6/15/2011 7:40 PM  

उम्मीद की सिहरन, अद्भुत भाव।

M VERMA 6/16/2011 8:29 AM  

एक सिहरन उम्मीद की
काफी है ....
उम्मीद की यह सिहरन ही तो जीजिविषा है
उहापोह में उम्मीद ..

श्यामल सुमन 6/16/2011 10:21 AM  

घिसटते हुए ही सही
पर चलते रहते हैं
अनवरत अपनी
मंजिल की ओर .

बस यही असली बात है संगीता जी - कदम चलते रहें.
सादर
श्यामल सुमन
+919955373288
www.manoramsuman.blogspot.com

दिगम्बर नासवा 6/16/2011 1:40 PM  

जब तक जिंदगी की राहें हैं ... चलना तो पढ़ता ही है ... चाहे दामन तार तार ही क्यों न हो ...

Anupama Tripathi 6/17/2011 9:28 AM  

बस इसके लिए
एक सिहरन उम्मीद की
काफी है ...
isi par tiki hai zindagi ...
bahut sunder rachna ..

Anupama Tripathi 6/17/2011 9:30 AM  

शनिवार (१८-०६-११)आपकी किसी पोस्ट की हलचल है ...नयी -पुरानी हलचल पर ..कृपया आईये और हमारी इस हलचल में शामिल हो जाइए ...

अजित गुप्ता का कोना 6/17/2011 10:13 AM  

रेगिस्‍तान में भी फूल खिलाने वाले लोग ही दुनिया में जगह पाते हैं।

Amrita Tanmay 6/17/2011 1:20 PM  

अद्भुत है रचना

ghughutibasuti 6/17/2011 1:55 PM  

बहुत सुन्दर.
उम्मीद हो क्या नहीं हो सकता?
घुघूती बासूती

निर्मला कपिला 6/17/2011 7:20 PM  

बहुत सुन्दर प्रेरण देती रचना के लिये बधाई। संगीता जी पोस्ट लिखने पर मुझे ई मेल भेज दिया करें रो एग्रिगेटर पर नही जा पाती। शुभकामनायें।

चन्द्र भूषण मिश्र ‘ग़ाफ़िल’ 6/18/2011 12:30 AM  

संगीता जी! इस उम्मीद भरी कृति के लिए बहुत-बहुत बधाई।
'एक बस उम्मीद पर ग़ाफ़िल ये दुनियाँ चल रही, वर्ना मंज़िल का पता किसको भला मालूम है'

Arvind Mishra 6/18/2011 8:01 AM  

कभी कभी सिहरन शब्द ही कैसी सिरहन दे देता है न -बढियां कविता !

Anonymous,  6/18/2011 1:20 PM  

निराशा भरे कदम
ठिठकते तो है
पर रुकते नहीं,

बिल्‍कुल सच कहा है इन पंक्तियों में आपने ।

संजय भास्‍कर 6/18/2011 2:21 PM  

संवेदनाओं से भरी बहुत सुन्दर कविता....हार्दिक बधाई.......

Vijuy Ronjan 6/18/2011 4:46 PM  

Ek behareen bhavpoorn aur samvedansheel rachna ke liye badhayee Sangeeta ji.

Ankur Jain 6/18/2011 10:12 PM  

जिन्दगी की सबसे अच्छी बात ये है की वो चलती जाती है और शायद सबसे बुरी बात भी...
बेहद सुन्दर प्रस्तुति...वधाई..

Vivek Jain 6/19/2011 12:08 AM  

संघर्ष करते हुए
हो जायेंगे पार ,
या फिर
पा जायेंगे कोई
नखलिस्तान ,

बहुत सुन्दर|बधाई|
विवेक जैन vivj2000.blogspot.com

www.navincchaturvedi.blogspot.com 6/19/2011 10:20 AM  

उम्मीद पे दुनिया कायम है, सुंदर प्रस्तुति|

महेन्‍द्र वर्मा 6/19/2011 11:04 AM  

उम्मीद की सिहरन...
वाह, क्या बात है।
इस एक शब्द ने कविता को जीवंत कर दिया है।
सिहरन का बिल्कुल नया प्रयोग ।
सचमुच की कविता यही है।

रचना दीक्षित 6/19/2011 12:59 PM  

मन में एक नई उम्मीद जगाती संवेदनशील पोस्ट
आभार

मुकेश कुमार तिवारी 6/19/2011 1:00 PM  

संगीता जी,

एक उम्मीद भरी कविता..निम्न पंक्तियों ने तो जीवन-यात्रा संदेश को सजीव कर दिया :-

निराशा भरे कदम
ठिठकते तो हैं
पर रुकते नहीं ,
घिसटते हुए ही सही
पर चलते रहते हैं
अनवरत अपनी
मंजिल की ओर

सादर,


मुकेश कुमार तिवारी

Alpana Verma 6/19/2011 4:04 PM  

उम्मीद के तारों से बंधे हम जीवन के रास्ते तय कर सकते हैं..अच्छी कविता

रविकर 6/19/2011 7:45 PM  

बहुत सुन्दर.
बधाई

रोहित 6/19/2011 9:18 PM  

ज़िंदगी की राहें
और उम्मीद का दामन
चलते रहते हैं
साथ - साथ,

BAHUT SUNDAR MA'M!!

पूनम श्रीवास्तव 6/20/2011 6:39 AM  

sangeeta di
bahut hi yatharth chitran kya hai aapne jivan ka jo ekdam sateek avam sarthak hai.
kahte hain ki ummid par hi duniya kayam hai .yah sach aapne apni behtreen rachna ke madhyam se sabit kar di hai
bahut bahut badhai
naman
poonam

रविकर 6/20/2011 1:49 PM  

main hi dinesh hun par ravikar nam se follow karna chahta hun |

samajh me nahi aa raha kaise --

help. please !

Yashwant R. B. Mathur 6/20/2011 3:02 PM  

कल 21/06/2011को आपकी एक पोस्ट नयी पुरानी हलचल पर लिंक की गयी है-
आपके विचारों का स्वागत है .
धन्यवाद
नयी-पुरानी हलचल

शिखा कौशिक 6/20/2011 3:07 PM  

jeevan ke prati aasha jagati kavita .aabhar

वीना शर्मा 6/20/2011 7:47 PM  

बहुत सुन्दर भावपूर्ण रचना..

S.M.HABIB (Sanjay Mishra 'Habib') 6/20/2011 8:39 PM  

संघर्ष करते हुए
हो जायेंगे पार ,
या फिर
पा जायेंगे कोई
नखलिस्तान....
बहुत सुन्दर सन्देश प्रसारित करती रचना दी...
सादर....

Udan Tashtari 6/21/2011 5:29 AM  

बहुत सुंदर..

रजनीश तिवारी 6/21/2011 6:17 AM  

एक आशा ,एक विश्वास और सांसें - ज़िंदगी का सफर । बहुत अच्छी लगी आपकी ये कविता ।

Anju (Anu) Chaudhary 6/21/2011 5:37 PM  

बेहद ख़ूबसूरत और भावपूर्ण रचना....

s n shukla 6/21/2011 7:54 PM  

bahut sundar rachana aur bahut sundar bhav.

virendra sharma 6/22/2011 1:51 AM  

आदमी उम्मीद को नहीं छोड़ता ,बाज़ोकात उम्मीद ही आदमी को छोड़ जाती है और ये नखलिस्तान ज़िन्दगी का यही तो पल दो पल की ज़िन्दगी है ,चलते जाना है जीवन संघर्षमें कुछ मिले न मिले ।
बहुत सघन भाव लिए रचना तपिश और जीवन की सुनामी का अतिक्रमण करती है आपकी .

रंजना 6/22/2011 1:53 PM  

वाह बेहतरीन !!!!

भावों को सटीक प्रभावशाली अभिव्यक्ति दे पाने की आपकी दक्षता मंत्रमुग्ध कर लेती है...

Pallavi saxena 6/22/2011 6:04 PM  

बहुत ही सुंदर लिखती हैं आप ,बहुत ही सरल शब्दों में दिल की गहराईयों को छु लेती हैं आप की रचनाएँ ,ऐसा लगता है जैसे सभी की ज़िंदगी एक जैसे ही होती है बस व्यक्त करने का तरीका अलग-अलग है आप का तो इतना अच्छा है की लगता है जैसे आप मेरे ही जिंदगी के बारे में कह रही हैं खास कर यह पंक्तियाँ
निराशा भरे कदम
ठिठकते तो है
पर रुकते नहीं,बहुत ही सुंदर मन को छु लेनने वाली रचना बहुत-बहुत धन्यवाद,एवं शुभकामनाये

विभूति" 6/22/2011 8:53 PM  

perna deti rachna.. ek umeed ko bandhti ek viswas jagati rachna...

अनामिका की सदायें ...... 6/22/2011 11:28 PM  

jab umeedo ka daman pakda ho to har manzil chaahe uski raah kitni bhi pathreeli kyu na ho....apni aashawadi soch se hi prapt ho jati hai.

satyam shivam sundaram ki tarah hi hai is rachna me chhupa updesh.

Anjana Dayal de Prewitt (Gudia) 6/23/2011 2:17 AM  

निराशा भरे कदम
ठिठकते तो हैं
पर रुकते नहीं
bahut sunder!

डॉ. नूतन डिमरी गैरोला- नीति 6/23/2011 12:29 PM  

बेहद सुन्दर अभिव्यक्ति...जीवन की यात्रा - उतार चदाव .. और अलग अलग जगह अब मरुस्थल.. और आशा ... आपकी यह कविता दिल को छु गयी... उम्दा

***Punam*** 6/23/2011 11:10 PM  

बहुत खूब....!!
उम्मीद पे दुनिया कायम है....!!

Urmi 6/24/2011 9:44 AM  

टिप्पणी देकर प्रोत्साहित करने के लिए बहुत बहुत शुक्रिया!
मेरे नए पोस्ट पर आपका स्वागत है-
http://seawave-babli.blogspot.com/

नश्तरे एहसास ......... 6/24/2011 1:46 PM  

कदम आज
पहुँच गए हैं
तपते रेगिस्तान में ,
संघर्ष करते हुए
हो जायेंगे पार ,
या फिर
पा जायेंगे कोई
नखलिस्तान ,
बस इसके लिए
एक सिहरन उम्मीद की
काफी है ....
aapki is kavita se hum jaisi nayi peedhi ko bahut himmat milegi....zindagi se na haar manne ki prerna deti kavitahumne to in panktiyon dil mein baitha liya hai jab kabhi mushkil mein padi inse manzil ki tarf badhne ki prerna milegi.bahut bahut dhanywaad aapka:)
aapki neha

hem pandey 6/24/2011 4:53 PM  

निराशा भरे कदम
ठिठकते तो हैं
पर रुकते नहीं ,

- यही सोच जीवन की नैया पार लगा देती है |

hem pandey 6/24/2011 4:53 PM  
This comment has been removed by the author.
VARUN GAGNEJA 6/25/2011 1:16 PM  

नदी - झील
पार करते हुए
कदम आज
पहुँच गए हैं
तपते रेगिस्तान में ,
संघर्ष करते हुए
हो जायेंगे पार ,
या फिर
पा जायेंगे कोई
नखलिस्तान ,
zindagi ke marahlon ki bechaini aur unse nikal paane ki khwahish......
bahut khoob

Madhu chaurasia, journalist 6/30/2011 6:06 AM  

सच कहा मैडम आपने... जिस वक्त उम्मीद छोड़ दी....उसी वक्त हार का सिलसिला शुरू हो जाता है....और इसे जो समझ गया उसे हार कभी छू भी नहीं पाएगी...

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