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मुहब्बत का दिया जला कर तो देखो .

>> Wednesday, October 26, 2011




आस्था का तेल 
और दिल की बाती 
यही है सच ही में 
मुहब्बत की थाती 
स्नेह पगे  फ़ूल 
खिला कर तो देखो 
मुहब्बत का दिया 
जला कर तो देखो .

बाती से मिले बाती 
तो हो रोशनी प्रज्ज्वलित 
अपेक्षाएं हों  सीमित 
तो प्रेम हो विस्तृत 
समर्पण को ज़रा 
विस्तार दे के देखो 
मुहब्बत का दिया 
जला कर तो देखो .

ऐसे दीयों की जब 
सजी हो दीपमाला 
हर दीप होगा अमर 
नहीं चाहिए होगी हाला 
इसमें  तुम खुद को 
डुबा कर तो देखो 
मुहब्बत का दिया 
जला कर तो देखो ..



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किसे अर्पण करूँ ?

>> Monday, October 17, 2011




भाव सुमन लिए हुए 
नैवेद्य  दीप सजे हुए 
प्रेम की पुष्पांजलि  को 
मैं किसे अर्पण करूँ ?

ज़िंदगी की राह में 
शूल भी हैं , फ़ूल भी 
किस किस का त्याग करूँ 
और किसे वरण करूँ ?

आज जिस जगह हूँ 
यादों का  समंदर है 
किस लहर को छोडूँ मैं 
और किसको नमन करूँ ?

आसक्ति से प्रारम्भ हो 
विरक्ति प्रारब्ध हो गयी 
किस छल - बल से भला 
मैं मोह का दमन करूँ ? 

नाते - रिश्ते सब मेरे 
दिल के बहुत करीब हैं 
किस किसको सहेजूँ 
और किसका तर्पण करूँ ?

भाव सुमन लिए हुए 
नैवेद्य  दीप सजे हुए 
प्रेम की पुष्पांजलि  को 
मैं किसे अर्पण करूँ ?


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