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मोह से निर्मोह की ओर

>> Friday, July 21, 2017

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मोह  से  ही तो 
उपजता  है  निर्मोह 
मोह  की अधिकता 
लाती है जीवन में क्लिष्टता 
और  सोच  हो जाती  है कुंद
मोह के दरवाज़े होने लगते हैं  बंद ।
हम ढूँढने  लगते  हैं ऐसी  पगडण्डी 
जो हमें  निर्मोह  तक ले  जाती  है 
धीरे धीरे जीवन में 
विरक्तता  आती  चली जाती है 
मोह  की तकलीफ से गुज़रता 
इंसान  निर्मोही हो  जाता  है 
या यूँ  कहूँ कि इंसान 
मोह के बंधन  तोड़ने को 
मजबूर  हो  जाता  है ।
संवेदनाएं  रहती  हैं  अंतस में 
पर ज़ुबाँ  मौन  होती  है 
प्रश्न  होते  हैं  चेहरे  पर 
और आँखें   नम  होती हैं 
बीतते  वक़्त  के  साथ 
खुश्क  हो  जाती हैं  आँखें 
और चेहरा भावशून्य  हो जाता है 
ऐसा  इंसान लोगों  की  नज़र में 
निर्मोही  बन  जाता  है ।





40 comments:

ताऊ रामपुरिया 7/21/2017 4:55 PM  

सही कहा आपने, जीवन कुछ इसी तरह मोह से निर्मोह की यात्रा पर चल पडता है, बहुत शुभकामनाएं.
रामराम
#हिन्दी_ब्लॉगिंग

Ravindra Singh Yadav 7/21/2017 5:13 PM  

इंसान के मोही से निर्मोही बनने की संक्षिप्त यात्रा को प्रभावी शब्दों में बयान किया गया है। समय के साथ परिवर्तन भावों-स्वभावों में भी होते हैं। सुन्दर रचना।

Satish Saxena 7/21/2017 5:34 PM  

ओह ,
मार्मिक अभिव्यक्ति !

अशोक सलूजा 7/21/2017 10:33 PM  

आप के लफ़्ज़ों ने कई दिलों के जस्बात
बयां कर दिए।
स्वस्थ रहें👌👌👍

yashoda Agrawal 7/22/2017 7:21 AM  

शुभ प्रभात दीदी
सादर नमन
मोह और निर्मोह को
सरलता से परिभाषित किया है आपने
सादर
#हिन्दी_ब्लॉगिंग

Jyoti Dehliwal 7/22/2017 8:34 AM  

समय इंंसान को सब कुछ सिखा देता हैं। सुंदर अभिव्यक्ति।

Onkar 7/22/2017 10:35 AM  

बहुत सुन्दर

ब्लॉग बुलेटिन 7/22/2017 12:09 PM  

ब्लॉग बुलेटिन की आज की बुलेटिन, " "कौन सी बिरयानी !!??" - ब्लॉग बुलेटिन , मे आप की पोस्ट को भी शामिल किया गया है ... सादर आभार !

कविता रावत 7/22/2017 8:14 PM  

कितना मोह करता है इंसान लेकिन एक दिन सबका मोह यहीं धरा का धरा रह जाता है
बहुत सुन्दर रचना

प्रतिभा सक्सेना 7/23/2017 1:50 AM  

मोह और विरक्ति? संसार में परस्पर विरोधी गुण पूरक रूप में उपस्थित हैं ( दुर्गा सप्तशती में या देवी सर्वभूतेषु में देखिये),
दोनो के सामंजस्य बिना जीवन का निस्तार नहीं .

Anita 7/23/2017 11:51 AM  

जो निर्मोह आँखों में शून्यता भर दे शायद वह असली वैराग्य नहीं..संत कहते हैं वैराग्य से कौन सा सुख नहीं मिलता..

Amrita Tanmay 7/23/2017 2:58 PM  

चित्त की यही गति होत है मोह के ठेस से । अति सुंदर ।

दिगम्बर नासवा 7/24/2017 4:10 PM  

ऐसे इंसान दूसरों की नज़र में निर्मोही बन जाता है ... पर ये भी सच है की वो निर्मोही नहीं हो पाता ... असल निर्मोह होना तो जीवन के द्वेष, मोह, को त्यागना होता है ... किसी से द्रोह न रखना ... सबको प्रेम करना ही निज को मोह से दूर करना है ... बहुत ही गहरी भावाव्यक्ति है ...

डॉ. मोनिका शर्मा 7/31/2017 1:33 PM  

समय का फेर मन की दशा दिशा भी बदलता ही है

Kailash Sharma 8/07/2017 10:09 PM  

मोह के जंगल से ही गुजरती है निर्मोह और विरक्ति की पगडंडी.... बहुत गहन और प्रभावी अभिव्यक्ति...

pushpendra dwivedi 9/11/2017 8:02 PM  

waah bahut khoob behtareen rachna


http://www.pushpendradwivedi.com/%E0%A4%B5%E0%A4%A4%E0%A4%A8-%E0%A4%95%E0%A5%87-%E0%A4%B8%E0%A4%BF%E0%A4%AA%E0%A4%BE%E0%A4%B9%E0%A4%BF%E0%A4%AF%E0%A5%8B%E0%A4%82-%E0%A4%95%E0%A5%80-%E0%A4%B9%E0%A5%8C%E0%A4%B8%E0%A4%B2%E0%A4%BE/

संजय भास्‍कर 9/12/2017 12:36 PM  

एक दिन सबका मोह यहीं धरा का धरा रह जाता है

Alaknanda Singh 11/18/2017 2:40 PM  

बहुत अच्‍छी तरह समझााई है आपने संगीता जी , मोह से निर्मोह की यात्रा...

NITU THAKUR 12/20/2017 4:30 PM  

बहुत प्यारी रचना

रेणु 12/20/2017 10:02 PM  

आदरणीय संगीता जी -- बहुत ही सरल शब्दों में आपने मोहग्रस्त इन्सान के निर्मोही कहे जाने की कथा को कह दिया | अनुपम दर्शन है ये जीवन का | बहुत ही अच्छा लिखा आपने | सादर

Ravindra Singh Yadav 12/20/2017 10:18 PM  

मोही से निर्मोही होने तक का सफ़र ख़ूबसूरती से बयान करती प्रभावी रचना. बधाई एवं शुभकामनायें.

Roushan Kumar 1/13/2018 1:12 AM  

बहुत ही अच्छा लिखा है आपने. बधाई एवं शुभकामनायें

'एकलव्य' 2/19/2018 8:55 AM  

निमंत्रण :

विशेष : आज 'सोमवार' १९ फरवरी २०१८ को 'लोकतंत्र' संवाद मंच ऐसे ही एक व्यक्तित्व से आपका परिचय करवाने जा रहा है जो एक साहित्यिक पत्रिका 'साहित्य सुधा' के संपादक व स्वयं भी एक सशक्त लेखक के रूप में कई कीर्तिमान स्थापित कर चुके हैं। वर्तमान में अपनी पत्रिका 'साहित्य सुधा' के माध्यम से नवोदित लेखकों को एक उचित मंच प्रदान करने हेतु प्रतिबद्ध हैं। अतः 'लोकतंत्र' संवाद मंच आप सभी का स्वागत करता है। धन्यवाद "एकलव्य" https://loktantrasanvad.blogspot.in/

टीपें : अब "लोकतंत्र" संवाद मंच प्रत्येक 'सोमवार, सप्ताहभर की श्रेष्ठ रचनाओं के साथ आप सभी के समक्ष उपस्थित होगा। रचनाओं के लिंक्स सप्ताहभर मुख्य पृष्ठ पर वाचन हेतु उपलब्ध रहेंगे।

'एकलव्य' 2/26/2018 9:10 AM  

निमंत्रण

विशेष : 'सोमवार' २६ फरवरी २०१८ को 'लोकतंत्र' संवाद मंच अपने सोमवारीय साप्ताहिक अंक में आदरणीय माड़भूषि रंगराज अयंगर जी से आपका परिचय करवाने जा रहा है।

अतः 'लोकतंत्र' संवाद मंच आप सभी का स्वागत करता है। धन्यवाद "एकलव्य" https://loktantrasanvad.blogspot.in/

टीपें : अब "लोकतंत्र" संवाद मंच प्रत्येक 'सोमवार, सप्ताहभर की श्रेष्ठ रचनाओं के साथ आप सभी के समक्ष उपस्थित होगा। रचनाओं के लिंक्स सप्ताहभर मुख्य पृष्ठ पर वाचन हेतु उपलब्ध रहेंगे।

'एकलव्य' 4/15/2018 9:56 PM  

निमंत्रण

विशेष : 'सोमवार' १६ अप्रैल २०१८ को 'लोकतंत्र' संवाद मंच अपने साप्ताहिक सोमवारीय अंक में ख्यातिप्राप्त वरिष्ठ प्रतिष्ठित साहित्यकार आदरणीया देवी नागरानी जी से आपका परिचय करवाने जा रहा है। अतः 'लोकतंत्र' संवाद मंच आप सभी का स्वागत करता है। धन्यवाद "एकलव्य" https://loktantrasanvad.blogspot.in/



टीपें : अब "लोकतंत्र" संवाद मंच प्रत्येक 'सोमवार, सप्ताहभर की श्रेष्ठ रचनाओं के साथ आप सभी के समक्ष उपस्थित होगा। रचनाओं के लिंक्स सप्ताहभर मुख्य पृष्ठ पर वाचन हेतु उपलब्ध रहेंगे।

Aman Shrivastav 2/28/2019 6:01 AM  
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Aman Shrivastav 2/28/2019 6:02 AM  
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Aman Shrivastav 3/17/2019 4:49 PM  
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Aman Shrivastav 3/17/2019 4:52 PM  
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Aman Shrivastav 3/17/2019 4:52 PM  
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Aman Shrivastav 3/17/2019 4:52 PM  
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BHBUJJWALSAINI 7/18/2019 12:06 PM  

Thanks you sharing information.
You can also visit on
How to think positive

How to control anger

yashoda Agrawal 12/16/2019 10:34 AM  

आपकी लिखी रचना ब्लॉग "पांच लिंकों का आनन्द" में मंगलवार 17 दिसम्ब 2019 को साझा की गयी है......... पाँच लिंकों का आनन्द पर आप भी आइएगा....धन्यवाद!

Sudha Devrani 7/24/2021 6:07 PM  

जब मोह ही प्रतिकार करे तो अनाशक्ति स्वाभाविक है...जो मोह का मान न रख पाये वे अनाशक्ति को निर्मोह ही समझेंगे...
इंसान निर्मोही हो जाता है
या यूँ कहूँ कि इंसान
मोह के बंधन तोड़ने को
मजबूर हो जाता है ।
संवेदनाएं रहती हैं अंतस में
पर ज़ुबाँ मौन होती है
ये विवशता है....बाध्यता है ये मन की। अनाशक्ति में निर्मोही होने से शान्ति नहीं शून्यता हासिल है
बहुत ही चिन्तनपरक लाजवाब सृजन।

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